" प्रकृति पूजक संस्कृति रक्षक आदि आनादिकाल वासी आदिवासी मूल वासी "
मैं आदिवासी समाज से प्रेम करती हूँ,मुझे गर्व है कि मैं आदिवासी हूँ | मेरे आदिवासी समाज की संस्कृति अन्य समाजो से बिलकुल अलग है | और आदिवासी समाज की संस्कृति से अन्य समाजों ने कई रीती रिवाजों को अपनाया भी है |हर समाज का इतिहास प्राचीन होता है,और हर व्यक्ति को अपने समाज से प्रेम होता है |मुझे भी अपने आदिवासी समाज से लगाव है |पर जब मैं यह सब कुछ नहीं जानती थी, कि आदिवासी समाज क्या होता है ? तब कुछ भी नही समझती थी और मुझे खुद को या किसी ओर आदिवासी समाज के व्यक्ति को कोई आदिवासी कहता तो मुझे बुरा लगता था |
" भारत में सिर्फ आदिवासी है एक ऐसा समुदाय जो प्रकृतिमूलक है,
जिस की जीवन प्रणाली बोली परम्परा रिती-रिवाज ,पहनावा,
संगीत-वाद्य, ज्ञान -कला संस्कृति व्यवहार आज भी सब से अलग है"
आज जब मैंने ये जाना की आदिवासी समुदाय इस धरा पर सबसे पहले से निवास कर रहा है |जब कोई भी नहीं था और अगर सबसे पुराना और प्राचीन समाज कोई है तो वो है आदिवासी समाज |आदिवासी समाज जितना पुराना है उतनी ही पुरानी इस समाज की संस्कृति है | जो की आज भी मेरे आदिवासी समाज में मुझे देखने को मिलती है | इतना ही नहीं बल्कि आज का युग जो की कई क्रांतियों से भरा पड़ा है,जैसे वैज्ञानिक क्रांति,श्वेत क्रांति,हरित क्रांति आदि | इसके बावजूद भी मेरा आदिवासी समाज हर रिवाज को पूरी तन्मयता के साथ निभाता आ रहा है |
" हजारो-हजार साल का जिन्दा इतिहास हु में,
मुझे आदिवासी कहते है, जैव विविधता को अपने में समेटे |
कहते है मैं हजारो हजार साल एक साथ जीता हु,
आज मेरे बच्चे हजार साल पुरानी संस्कृति भी जीते है तो आज की आधुनिक संस्कृति भी "
मुझे गर्व है की मैं आदिवासी हूँ,क्योंकि मेरा आदिवासी समाज कभी किसी का गुलाम नहीं हुआ |मेरे समाज ने ही तो जो राजपूत क्षत्रिय थे उन्हें अपने क्षेत्र में पनाह दी,और उनकी उनके शत्रुयो से रक्षा की थी | आज भी अगर किसी कार्य को करना होता है तो सबसे पहले आदिवासी समुदाय को याद किया जाता है | हमारे भारत देश के कई कार्य जिसमे मकान बनाना,हमारे शहरो में बनने वाले कई तरह के भवनों के कार्य,खेती करने वाले लोग भी मेरे आदिवासी समाज के है |मेरे आदिवासी समाज के कई महान पुरुषो ने भारत की आज़ादी के लिए भी अपना योगदान दिया है लेकिन कही किताबो में मुझे उनके विषय में ज्यादा पढ़ने को नहीं मिला |मैं यहाँ दो उदाहरण देना चाहूंगी १.बांसवाड़ा के मानगढ धाम की घटना और २.सिरोही के भुला में लिलुडी बड़ली की घटना मुझे मेरे आदिवासी समाज के योगदान की याद दिलाता है |मैं इस बात से हमेशा खुश रहती हूँ की कुदरत ने मुझे आदिवासी समाज में जन्म दिया |
" मुझे गर्व है कि मैं आदिवासी हूँ क्योंकि मैं इस धरती कि मूलवासी हूँ,
मेरी अपनी संस्कृति है , मेरी अपनी भाषा है हम किसी पर आश्रित नहीं है,
हमारा अपना वजूद है आदिवासी न तो आस्तिक है, न तो नास्तिक है ,आदिवासी वास्तविक है "
एक बात जो मेरे मन के भीतर है वह यह कि मेरी तरह मेरे समाज के और भी कई युवा साथी जो कि अपने आपको आदिवासी कहने में शर्म महसूस करते है, वो इसीलिए क्योंकि वो आदिवासी का सही अर्थ एवम उसका अपना महत्व नहीं जानता |जब आज मैं आदिवासी होने पर गर्व कर रही हूँ तो मुझे आशा है कि मेरे आदिवासी समाज का हर व्यक्ति अपने आप पर गर्व करके कहेगा कि मैं आदिवासी हूँ |और मुझे भी इस बात पर गर्व है कि मैं आदिवासी हूँ |
'' चलती रहूंगी मैं पथ पर चलने मे माहिर बन जाऊँगी ,
मेरी अस्मिता को उजागर करुँगी मेरी संस्कृति का एक अंग बनूँगी "
विश्व आदिवासी दिवस के उपलक्ष में आयोजित निबंध प्रतियोगिता में प्रथम आये विद्यार्थी का निबंध
राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय मामेर
कोटड़ा तहसील, जिला उदयपुर, राजस्थान
नाम - संध्या कुमारी
कक्षा - 12th
विषय - मुझे गर्व है कि मैं आदिवासी हूँ
मैं आदिवासी समाज से प्रेम करती हूँ,मुझे गर्व है कि मैं आदिवासी हूँ | मेरे आदिवासी समाज की संस्कृति अन्य समाजो से बिलकुल अलग है | और आदिवासी समाज की संस्कृति से अन्य समाजों ने कई रीती रिवाजों को अपनाया भी है |हर समाज का इतिहास प्राचीन होता है,और हर व्यक्ति को अपने समाज से प्रेम होता है |मुझे भी अपने आदिवासी समाज से लगाव है |पर जब मैं यह सब कुछ नहीं जानती थी, कि आदिवासी समाज क्या होता है ? तब कुछ भी नही समझती थी और मुझे खुद को या किसी ओर आदिवासी समाज के व्यक्ति को कोई आदिवासी कहता तो मुझे बुरा लगता था |
" भारत में सिर्फ आदिवासी है एक ऐसा समुदाय जो प्रकृतिमूलक है,
जिस की जीवन प्रणाली बोली परम्परा रिती-रिवाज ,पहनावा,
संगीत-वाद्य, ज्ञान -कला संस्कृति व्यवहार आज भी सब से अलग है"
आज जब मैंने ये जाना की आदिवासी समुदाय इस धरा पर सबसे पहले से निवास कर रहा है |जब कोई भी नहीं था और अगर सबसे पुराना और प्राचीन समाज कोई है तो वो है आदिवासी समाज |आदिवासी समाज जितना पुराना है उतनी ही पुरानी इस समाज की संस्कृति है | जो की आज भी मेरे आदिवासी समाज में मुझे देखने को मिलती है | इतना ही नहीं बल्कि आज का युग जो की कई क्रांतियों से भरा पड़ा है,जैसे वैज्ञानिक क्रांति,श्वेत क्रांति,हरित क्रांति आदि | इसके बावजूद भी मेरा आदिवासी समाज हर रिवाज को पूरी तन्मयता के साथ निभाता आ रहा है |
" हजारो-हजार साल का जिन्दा इतिहास हु में,
मुझे आदिवासी कहते है, जैव विविधता को अपने में समेटे |
कहते है मैं हजारो हजार साल एक साथ जीता हु,
आज मेरे बच्चे हजार साल पुरानी संस्कृति भी जीते है तो आज की आधुनिक संस्कृति भी "
मुझे गर्व है की मैं आदिवासी हूँ,क्योंकि मेरा आदिवासी समाज कभी किसी का गुलाम नहीं हुआ |मेरे समाज ने ही तो जो राजपूत क्षत्रिय थे उन्हें अपने क्षेत्र में पनाह दी,और उनकी उनके शत्रुयो से रक्षा की थी | आज भी अगर किसी कार्य को करना होता है तो सबसे पहले आदिवासी समुदाय को याद किया जाता है | हमारे भारत देश के कई कार्य जिसमे मकान बनाना,हमारे शहरो में बनने वाले कई तरह के भवनों के कार्य,खेती करने वाले लोग भी मेरे आदिवासी समाज के है |मेरे आदिवासी समाज के कई महान पुरुषो ने भारत की आज़ादी के लिए भी अपना योगदान दिया है लेकिन कही किताबो में मुझे उनके विषय में ज्यादा पढ़ने को नहीं मिला |मैं यहाँ दो उदाहरण देना चाहूंगी १.बांसवाड़ा के मानगढ धाम की घटना और २.सिरोही के भुला में लिलुडी बड़ली की घटना मुझे मेरे आदिवासी समाज के योगदान की याद दिलाता है |मैं इस बात से हमेशा खुश रहती हूँ की कुदरत ने मुझे आदिवासी समाज में जन्म दिया |
" मुझे गर्व है कि मैं आदिवासी हूँ क्योंकि मैं इस धरती कि मूलवासी हूँ,
मेरी अपनी संस्कृति है , मेरी अपनी भाषा है हम किसी पर आश्रित नहीं है,
हमारा अपना वजूद है आदिवासी न तो आस्तिक है, न तो नास्तिक है ,आदिवासी वास्तविक है "
एक बात जो मेरे मन के भीतर है वह यह कि मेरी तरह मेरे समाज के और भी कई युवा साथी जो कि अपने आपको आदिवासी कहने में शर्म महसूस करते है, वो इसीलिए क्योंकि वो आदिवासी का सही अर्थ एवम उसका अपना महत्व नहीं जानता |जब आज मैं आदिवासी होने पर गर्व कर रही हूँ तो मुझे आशा है कि मेरे आदिवासी समाज का हर व्यक्ति अपने आप पर गर्व करके कहेगा कि मैं आदिवासी हूँ |और मुझे भी इस बात पर गर्व है कि मैं आदिवासी हूँ |
'' चलती रहूंगी मैं पथ पर चलने मे माहिर बन जाऊँगी ,
मेरी अस्मिता को उजागर करुँगी मेरी संस्कृति का एक अंग बनूँगी "
विश्व आदिवासी दिवस के उपलक्ष में आयोजित निबंध प्रतियोगिता में प्रथम आये विद्यार्थी का निबंध
राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय मामेर
कोटड़ा तहसील, जिला उदयपुर, राजस्थान
नाम - संध्या कुमारी
कक्षा - 12th
विषय - मुझे गर्व है कि मैं आदिवासी हूँ
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