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भारत
के लगभग 20% भूभाग में 600 से भी अधिक आदिवासियों जिनकी संख्या 10 करोड़ है
भारत के कुल जनसंख्या का सिर्फ 8% ही है। पूर्वकाल से आदिवासियों का अपने
प्राकृतिक संसाधनों पर पूर्ण अधिकार था। लेकिन आधुनिक युग की शुरुवात के
पूर्व जब भारत में कई विदेशी आक्रमणकारी लोगो का प्रवेश होना शुरू हुआ तो
इससे यहाँ के आदिवासी समुदाय के जनजीवन में कोई फर्क नहीं पड़ा क्योकि वे
आक्रमणकारी लोग इन आदिवासियों के क्षेत्रो में प्रवेश नहीं किया था। हुन ,
मंगोल और मुगलो का भारत में बार बार आक्रमण करने का मुख्य मकसद सिर्फ कीमती
चीजो जैसे सोना आदि को लूटना था। मुगलो ने भारत में 1526-1857 तक लंबा
शासन कायम किये। लेकिन जब 17वी शताब्दी के मध्य में अंग्रेज व्यापार करने
के उद्देश्य से भारत आये तो इन्होंने धीरे -धीरे अपने साम्राज्य को फैलाना
शुरू कर दिया और अंत में उन्होंने पुरे भारत पर कब्ज़ा कर लिया। जब अंग्रेज
शासको ने अपना कानून बना कर जल , जंगल और जमीन पर अपना अधिकार जमाना शुरू
किया तब भारत के आदिवासियों ने सर्वप्रथम डट कर विरोध किया। 1778 ईसवी में
छोटानागपुर के पहाड़ी सरदारो ने अंग्रेजी शासको के विरुद्ध विद्रोह कर दिया।
1780 ईसवी में ‘कोल समाज’ एवं ‘तामार समुदाय’ के लोगो ने बगावत कर दिया।
इस प्रकार ‘भील विद्रोह’ ,’खेड़वाल विद्रोह’ , ‘संताल विद्रोह’ , ‘कोवा
विद्रोह’ , ‘नायक विद्रोह’ , ‘नागा विद्रोह’ आदि असंख्य उदाहरण जिसमे
आदिवासी समुदाय ने लगातार संघर्ष और बलिदान दिया। 1857 के महान स्वतन्त्रता
संग्राम में अगुवाई के लिए गोंडवाना के राजा 'शंकर शाह' और 'रघुनाथ शाह'
को ब्रिटिश शासको ने तोप के मुँह में बांध कर उड़ा दिया था। अंग्रेज हुकूमत
के क्रूरता के आगे जब आदिवासी समुदाय के लोग नहीं झुके तब थकहार कर 1878
में ब्रिटिश शासको ने आदिवासी क्षेत्रो में ' The Schedule District Act '
पारित कर वहां अलग प्रशासनिक व्यवस्था प्रारम्भ कर अन्य क्षेत्रों पर लगे
कानून से इन क्षेत्रों को मुक्त कर दिया।
1935 में 'Government of India Act' पारित हुआ जो आज का हमारे संविधान
का आधार है। इस एक्ट के 'Chapter 05' में Excluded And Partially Excluded
Areas करके दो क्षेत्र बनाये। ये दोनों क्षेत्र सारे आदिवासी समुदाय के
क्षेत्र थे। इस एक्ट के 'Chapter 05' में कहा गया की इन क्षेत्रो में जो
Central और State के कोई भी कानून लागु नहीं होंगे इस का अर्थ यह था की
आदिवासी क्षेत्रो में अंग्रेजी हुकूमत के उन तमाम कानूनों से यह क्षेत्र
मुक्त होंगे जो जल , जंगल और जमीन को लूटने के लिए अंग्रेजो ने बनाये थे
जिसने पुरे भारत को गुलाम बनाया गया था। इसका सीधा मतलब था की भारत के
आदिवासी समाज अंग्रेजो के गुलाम नहीं थे। जब देश आजाद हुआ और भारत का
संविधान तैयार हुआ तो 1935 में बने 'Government of India Act' के 'Chapter
05' को ’10वें भाग’ में इसे रखा गया और उसे ‘अनुच्छेद 244’ में यह प्रावधान
किया गया की जितने भी आदिवासी क्षेत्र थे उन्हें ‘पाँचवी’ और ‘छठी
अनुसूची’ में बांट दिया जाए ।
‘पांचवी अनुसूची’ में कुछ ‘पॉकेट्स’ अलग अलग राज्यो में थे जहाँ आदिवासी
समुदाय रहते थे उन क्षेत्रो को ‘Identify’ किया गया और उन क्षेत्रों को
‘पांचवी अनुसूची’ में Include कर दिया गया इन्हें ‘Schedule Area’ कहा गया ,
और जिन राज्यो में जो आदिवासी बहुल जैसे मिजोरम , नागालैंड , असम के पहले
के राज्य थे चुकी इन राज्यों में आदिवासियों की संख्या लगभग 95% थी इन्हें
‘छठी अनुसूची’ में Include कर इन्हें ‘Tribal Area’ कहा गया। इन क्षेत्रो
के लिए कहा गया था की इनका प्रशासन अलग तरीके से चलेगा। इन क्षेत्रों का
प्रबंधन आदिवासी केंद्रित बनाने का प्रावधान किया गया। ‘अनुच्छेद 244’ के
तहत उन आदिवासी क्षेत्रो को ‘पांचवी’ और ‘छठी अनुसूची’ में बांटा गया। असम ,
नागालैंड , मिजोरम , त्रिपुरा जैसे राज्यो को ‘छठवी अनुसूची’ ‘ट्राइबल
एरिया’ और देश के अन्य नौ राज्यो को ‘पांचवी अनुसूची’ के तरह 'शेड्यूल
एरिया' के रूप में वर्गीकृत किया गया।
इन क्षेत्रो के सामान्य और सभी कानून ‘आदिवासी कल्याण’ की दृष्टि में रख
लागु किया जाना था लेकिन 1950 के बाद विधायिका अर्थात ' विधान सभा ' ने इस
पक्ष में कोई ध्यान ही नहीं दिया सिर्फ सरकार ही चलाते रहे , इलेक्शन
कराते रहे। विडम्बना यह है की जनजाति समाज के हित में बनी संविधान के इस
योजना के सम्बन्ध में राज्यपाल और सांसद एवं विधायक अभी तक अनभिज्ञ है।
नौकरशाही ने भी मंत्रियों का ध्यान इस और नहीं दिलाया। नतीजा यह हुआ की
गुलामी के जिन कानूनों से अंग्रेजी हुकूमतों ने आदिवासी समाज को मुक्त रखा
था वे सभी कानून स्वाधीन भारत के लोकतान्त्रिक सरकारों ने उन आदिवासियों पर
लाद दिए और आदिवासी समाज उन गफलत के कारण आजाद देश के गुलाम बन गए उनके
उनके क्षेत्र से जल,जंगल , जमीन और खनिज का दोहन कर सरकार भरपूर मुनाफा कमा
रहे है।
-संकलित
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