आदिवासी सांस्कृतिक एकता महासंमेलन, राजस्थान




"24 वा आदिवासी सांस्कृतिक एकता महासम्मेलन- 2017 "
!!सफलता पूर्वक सम्पन हुआ !!
"आपकी जय"
प्रतिवर्षानुसार इस बार भी पृथ्वी कि दिशा परिवर्तन के दिन 14, 15 जनवरी 2017 , डाकन कोटडा, जिला उदयपुर, राजस्थान में "आदिवासी एकता परिषद"के तत्वाधान में आयोजित किया गया, इस महासम्मेलन में देश के हर राज्यो के अलग अलग भाषा बोलने वाले, जनप्रतिनिधि, छात्रो, मजदूर,किसान, govt. कर्मचारी / अधिकारी असंख्य आदिवासी सामाजिक जन संगठनो के सदस्यों भी शामिल हुये । सांस्कृतिक झलकिया देखने के अवसर मिले ।
महासम्मेलन का शुभारम्भ प्रकृति पूजा एवम् "महिला एवम् बाल सम्मान यात्रा" के स्वागत रैली से हुआ ।
शुरुआती मंच संचालन आदिवासी एकता परिषद के संस्थापक सदस्य सांगलिया भाई के द्वारा किया गया।
गुजरात के भूतपूर्व मुख्यमंत्री श्री अमरसिंह चौधरी जी कि अध्यक्षता में महासम्मेलन सम्पन हुआ।
इस अवसर पर देश के 14-15 राज्यो के आदिवासी शुभ चिंतक अपनी पारंपरिक वेशभूषा को धारणकर शामिल हुये। इस मौके पर अनेको आदिवासी विचारको ने महासमेलन को संबोधित किये !

गोसा पेंटर के द्वारा बनाई गये थीम चित्र ,जिसमे Univesal एवम् समग्र जीवन को चरितार्थ किया गया ।

महावीर खराड़ी राजस्थान:-- वैज्ञानिको का हवाला देते हुये कहते है, दुनिया को बचाना है, तो आदिवासियों कि जीवनशैली को अपनाना होगा।
समाज के वीरो का बखान करते हुये कहते है, हमारे वीरो कि एक आवाज पर मंगलो को मेवाड़ में घुसने नहीं दिये ।

कार्यक्रम कि प्रस्तावना:- अशोक भाई चौधरी जी ने दिया, "वो तो हमको कब्र में डाल दिये थे, लेकिन उन्हें तो पता नहीं था हम तो बीज थे, वापस अंकुरित हो गये और वृक्ष बने है, फिर आने वाली पीढ़ी के बीज छोड़कर जायेंगे।"
नेतृत्व ऐसा हो कि दुनिया कि चुनोतियाँ का सम्मान कर सके । जिसमे समाज का जीवन मूल्य और जीवन शैली सुरक्षित हो। रिफ्यूजीयो को कहते है, आप हमारे देश में आते गये, हम पनाह देते गये । लेकिन सब परिणाम नकारात्मक निकले !
राणा पूंजा भील नहीं होते तो महाराणा प्रताप कैसे होते ? हमारे समाज में महिलाओ एवम् बच्चों कि सबसे ज्यादा बुरी स्थति है। इस और सबका ध्यान खीचने के लिये 84 दिन यात्रा कि शुरुआत किये । हम लोग यात्रा के दौरान बिरसा के गॉव गए जहा पर आज भी 100% लोग कुपोषण के शिकार है। अभी तक 116 साल हो गए लेकिन अभी तक कोई भी जिम्मेदार लोग नहीं गए ये कैसी आजादी है ? CG के दिन गॉव ऐसे है जहा पर एक भी महिलाओ को बक्शा नही गया। हम चाहते है, बुद्धिजीवियो लोगो में संवेदना जगे । हमारा आंदोलन जितने का आंदोलन नहीं है । हार कर प्यार जितने का आंदोलन है । आदिवासी एकता परिषद हार जायेगा लेकिन आदिवासी समाज नहीं हारेगा । आदिवासी हर सभ्यता कि धरोहर है। आदिवासी का पैदा होना प्रकृति का वरदान है।
हमारे साथ विगत 24 सालो से संघर्ष कर रहे साथियो का समपर्ण देखकर आँखों में आसु आते है। उन्होंने सिर्फ दिया ही दिया है, सहा है, लेकिन आजतक कभी कुछ मांगे नहीं है।

दुनिया कि सल्तनते हमारा इस्तेमाल किये है।

हमारा सिद्धांत है " साँप के ज़हरीले दाँत निकाल देना चाहिये । लेकिन साँप को नहीं मारना चाहिये ।"

1942 में गांधी जी ने जाहिर किया था,आप नेतृत्वकर्ता बनो क्योंकि हर घर का तीसरा व्यक्ती जेल में है। बहुत बड़ा नेता बनने कि जरुरत है।
जितनी बड़ी चुनोती है, उतना अच्छा अवसर भी है।

प्रकृति खराड़ी (अनुसूचित जनजाति आयोग):-- महिलाओ को आगे आने कि पहल किये है।

झूमा सोलंकी विद्यायक भिकनगॉव( MP ):--
आदिवासी समाज में महिलाओ को जो सम्मान मिलता है, बाकि समाज में ऐसा नहीं है।

बरखा लकड़ा झारखण्ड :----
मैं ऐसी धरती से आई हु जहाँ पर वीरांगनाओ कि शौर्य कि गाथा सुनाई जाती है, जैसे फूलो झानु, सिंगी दाई, मानकी मुंडा आदि।
आदिवासी समाज में महिलाओ का पीड़ा और दर्द का विस्तार से बखान किये। महिलाओ को अपने सम्मान के हमेशा सचेत रहने को कहा । सवाल किया समाज कि रक्षा कि जिम्मेदारी कौन लेगा ?
देश में महिलाओ कि स्थति काफि गंभीर है। झारखण्ड कि बेटिया मजदूर बन गई है। बड़े बड़े शहर में काम कर रही है। जहाँ पर हर प्रकार का शोषण उनके साथ होता है। आर्थिक, औद्योगिक, वैश्वीकरण कि गलत नीतियों के कारण समाज तेजी से पलायन कर रहा है। अपने अस्तित्व को कैसे बचाये ?
विकास कि राजनीती ने आदिवासी समाज का बहुत नुकसान किया है। देश में अकाल के दौरान लोग प्रभावित नहीं हुए लेकिन विकास के नाम पर हजारो लोग प्रभावित हुये है । विकास हो हम भी चाहते है, लेकिन मेरा समाज को ही मूल्य चुकाना पड़ता है। ये शोध का विषय है । मैं अपने आत्म सम्मान के लिए पूंजीवादी लोगो को जवाब देना चाहती हु।
हमारी संस्कृति को देखने के लिये विदेश से लोग आते है।

कुसुम ताई आलम महाराष्ट :---
काली बाई 12 साल कि उम्र में शिक्षा के लिये अपने गुरु को बचाने के लिये शहीद हो गई थी।
** महिलाओ एवम् बाल सम्मान यात्रा :-- यह यात्रा 309 गॉव से होकर 12827 KM कि दुरी तय किया।
यात्रा का समाज ने 19 प्रकार का स्वागत किया गया ।
हमारा समाज मातृ शक्ति का गौरव वाला है। संस्कार हमारे खून में शामिल है। आदिवासी समाज में बहुत सम्मान देखने को मिलता है। समाज कि वास्तविकता को हमने देखा इसलिये बया करने का पूरा हक है।

" Certificate वाले आदिवासी न बनो समाज कि संस्कृति वाले आदिवासी बनो"

वाहरु भाई सोनवाने:--
आदिवासियों का जीवन मूल्य और प्रकृति का अस्तित्व को बनाये रखना बहुत जरुरी है।
तुम्हारा मूल कहा है ? पानी में है, खून में है तलाश करो
पढ़ने लिखने वाले बच्चों से सवाल है ? संस्कृति के आधार पर अपने पूर्वोजो का गुण आपके पास है । प्रकृति रूपी जीवन मूल्य को आप बनाये रखते हो तो आप आदिवासी हो ।आज सब बदल रहा है।
आदिवासी संस्कृति पूरी मानव जातियो को सँभालने वाली संस्कृति है। अगर किसी कि मृत्यु किसी आदिवासी मोहल्ले या गॉव में होती है। तो पूरा गॉव उस परिवार के दुःख दर्द में सहानुभूति रखता है। और गम में डूब जाता है। ऐसी मानवीयता कि गरिमा आदिवासी समाज में आज भी मौजूद है । हमारी संस्कृति के आधार पर चलोगे तो दुनिया बचेगी ।

महेश वसावा जी ( भिलिस्थान टाइगर सेना )
समाज उत्थान एवम् दर्द को दूर करने के लिये राजनितिक विकल्प को मजबूत करना होगा । देश कि पार्लियामेंट में आवाज लगानी होगी । हर जगह राणा पुंजाभील का स्टेच्यू होना चाहिये । कारपोरेट घरानो ने अपने निजी स्वार्थ के लिये देश का प्राकृतिक संसाधनों को लूटा है ।

गजानंद ब्राह्मणे ( आदिवासी मुक्ति संगठन MP ):---
हमे ऐसी शिक्षा चाहिये जिसमे आदिवासियत कि मानवीयता जिन्दा रहना चाहिये । देश के इतिहास पर फिर से विचार होना चाहिये और संविधानिक अधिकारो को कैसे सुरक्षा प्रदान करे ? संविधान को बचाये या आदिवासीयो को बचाये ? हम इतिहास में कहा कमजोर है ? हर गॉव में सामुदायिक दावे भरे जाना चाहिये । 5, 6 अनुसूची के तहत गॉवो का पारम्परिक सीमांकन होना चाहिये !

सतीश पेंडाम नागपुर :
माइक में बोलने से पहले कहते है, आवाज बढ़ाओ, आदिवासियों कि आवाज को दबा दिया जाता है। लेकिन हम आवाज दबाने वालो को जमीन में दफन करने कि ताकत रखते है। ये देश नेताओ के विचारो से चलता है, हम चाहते है हमारे वीर शहीद बिरसा और टंटिया के विचारो से चलना चाहिए ।यहाँ पर हर जगह से लोग हजारो कि संख्या में एकत्रित हुये है। सवाल है समाज को वैचारिक रूप से एकत्रित कैसे किया जाये ?
दूसरे समाज के पास जीवन का संचलन कैसे किया जाये इसके लिये उनके पास विकल्प है लेकिन आदिवासी समाज के पास क्या है ? समाज के पास ठोस मिशन क्यों नहीं है ? वास्तविक इतिहास से समाज गुमराह हुआ है। आदिवासियों कि जमीन कहा खो गई ? इस धरती पर ऊपर वाला हो सकता है, तो ऊपर वाली क्यों नही हो सकती ? जब ऊपर वाली कि बात आती है तो मातृशक्ति का बखान होता है। जहा मातृशक्ति का बखान होता है। वहा पर आदिवासियों कि संस्कृति का बखान होता है।
जब तुम्हारे साथ कोई नहीं है तो आप मालिक कैसे हो ?
इस महासम्मेलन में हर वर्ग शामिल हुआ । इतनी ठण्ड होते हुये भी समाज अपेक्षा लिये हुये कई किलोमीटर कि दुरी तय करके सम्मलेन में शामिल हुआ। ये बदलाव के संकेत है।
इस महासम्मेलन को सफल बनाने के लिये साथियो ने बहुत परिश्रम किये । सफलता का श्रेय इन्ही को जाता है।
देश का चौथा स्तम्भ माने जाने वाला राष्टीय इलेक्ट्रॉनिक मीडिया कि मौजूदगी यहाँ पर भी नदारत थी।
विक्रम अछालिया जयस
"जय जयस"

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